मोहे सुन सुन आवे हासी पानी में मीन प्यासी,
आतम ज्ञान बिना नर भटके कोई मथुरा कोई काशी,
मिरगा न भी वसे कस्तूरी बन बन फिरत उदासी,
पानी में मीन प्यासी......
जल बीच कवल कवल बीच कलियाँ,
ता पर भवर निवासी,
सो मन बस तिरलोक बहियो है यति सीत सन्यासी,
पानी में मीन प्यासी...
जातो धान धरे निशवाशर मुनि जन सहस अठासी,
सो तेरे घट माही विराजे परम पुरष अविनाशी,
पानी में मीन प्यासी,
है हाज़िर तोहे दूर बता वे दूर की बात निरासी,
कहे कबीर सुनो भाई साधो गुरु बिन बरहम ना जासी,
पानी में मीन प्यासी...