छाए काली घटायें तो क्या इनकी छतरी के निचे हु मैं

छाए काली घटायें तो क्या इनकी छतरी के निचे हु मैं,
आगे आगे ये चलता मेरे मेरे बाबा के पीछे हु मैं,
इसने पकड़ा मेरा हाथ है बोलो डरने की क्या बात है,

क्यों मैं भटकु यहाँ से वहा इनके चरणों में सारा यहा,
झूठे स्वार्थ के रिश्ते सभी खुशियों का खजाना यहा,
रहता हर दम मेरे साथ है,मुझको डरने की क्या बात है,

यहाँ लगती आनंद की छड़ी ऐसी महफ़िल सजता है ये,
हम क्यों न दीवाने बने ऐसे जलवे दिखता है ये,
करता किरपा की बरसात है मुझको डरने की क्या बात है,

इनकी महिमा का वर्णन करू मेरी वाणी में वो दम नहीं,
जब से इनका सहारा मिला फिर सताए को गम नहीं,
इनका सिर पे हाथ है डरने की क्या बात है,

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