रखना सुहागन भोले भंडारी,
हियँ धरि बंदऊँ मैं त्रिपुरारी,
रखना सुहागन.....
जब लगि गंग जमुन जल धारा,
अचल रहे अहिवात हमारा,
माँगू सत्य असीस तुम्हारी,
रखना सुहागन भोले भंडारी,
मांग सिंदूर माथे बिंदिया चमके,
घर आँगन फुलवारी महके,
पिय से ही सब शान हमारी,
रखना सुहागन भोले भंडारी,
प्राननाथ बिनु कछु जग नाहीं,
नहीं कछु सुखद कतहुँ कछु नाहीं,
संग पिय बाँटू सुख दुख सारी,
रखना सुहागन भोले भंडारी,
होने ब्रह्मलीन जब जाऊँ,
सोलह मैं श्रृंगार कराऊँ,
प्रियतम काँधे निकले सवारी,
रखना सुहागन भोले भंडारी,
आभार: उषा ज्योति पाठक
वाराणसी