मैं वारि जाऊं सतगुरु की,
जिन लायी नाम सों यारी।
मन तो पापी भागता जाए,
छन भंगुर से यारी लगाए।
मैं वारि जाऊं सत्गुरु की,
जिन काटी यह मन की उडारी॥
सद्गुरु दाता मेरा दयालु,
भगतो पे रहता सदा कृपालु।
मैं वारि जाऊं सतगुरु की,
जिन निर्गुण अपनी बना ली॥
ऐसी अर्ज सुनो जी दाता,
दिन राती तेरा ध्यान हो दाता।
मैं वारि जाऊं सत्गुरु की,
जिन रंग दिनी मोहे सारी॥