सुने घर के कोने

सुने घर के कोने,
सुने सुने खिलोने,
कब से खड़ी तेरे द्वार में,
मैया शेरावाली भर दे खाली झोली,

एक ही सपना मैं हर रोज सजाती हु,
कितने वर्षो से मैं लोरियां गाती हु,
फिर भी कबसे है सुनी पलने ये की डोरी,
भर दे खाली झोली

सुने घर के कोने,
सुने सुने खिलोने,
कब से खड़ा तेरे द्वार में,

जब जब रंगो का त्यौहार ही आता है,
एक सवाल ही बार बार मड़राता है,
पिचारी लेकर कौन उस से खेले गा होली,
भरदे खाली झोली,
सुने घर के कोने,
सुने सुने खिलोने,
कब से खड़ी तेरे द्वार में,

पतजड़ में भी डाली पे फूल खिलता है,
माँ तेरे दरबार में उतर मिलता है,
कब से तड़प है कब सुन पाए तितली भोली,
भरदे खाली झोली,
सुने घर के कोने,
सुने सुने खिलोने,

ताने सुन के लोगो के थक जाती है,य
तू जाने नैन मेरे क्यों  भर आते है,
किस्मत यु कब तक खेलती रहे आँख मिचोली,
भरदे खाली झोली,
सुने घर के कोने,
सुने सुने खिलोने,
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