ग्यारस की ग्यारस हर बार जाता हु मैं श्याम के द्वार,
पर मुझको घर बैठे ही ऐसा लगता है कई बार ,
खाटू गए बगैर मुझे श्याम मिल गया,
मिल जाता है मुझे अगर अँधा लंगड़ा रस्ते पर,
उसे सहरा देकर मैं पौंचता जब उसे घर,
लगता है इक निशान मेरा आज चढ़ गया,
खाटू गए बगैर मुझे श्याम मिल गया,
बालक भूखा दिख जाए मुझसे राहा नहीं जाये,
उसको रोटी देकर ही चैन मेरे दिल को आये,
लगता है श्याम को की मेरा भोग लग गया,
खाटू गए बगैर मुझे श्याम मिल गया,
चीचड़ो में दिखी एक बहन छिपा रही हाथो से तन,
चीर उड़ाया उसको तो आंखे होगी उसकी नम,
ऐसा लगा मुझे की मेरा श्याम सज गया,
खाटू गए बगैर मुझे श्याम मिल गया,
श्याम की सेवा को जानो,
सार्थक तभी है ये मानो,
दीना नाथ के दीनो की मदत करो तुम दीवानो,
सोनू लगे गा ये के तुम्हे श्याम मिल गया,
खाटू गए बगैर मुझे श्याम मिल गया,