मैं दास मन का, हूँ मन का पुजारी ।
मेंरा जन्म लेना विफल हो गया ॥
हुआ भाव करलूं, तपस्या कभी जो ॥
करूँ दूर मुझमे, बुराई भरी जो,
कहा मन ने मेरे ,कभी फिर करूँगा,
यहीं दाँव मन का, सफल हो गया ॥
मैं दास मन का....
करूँ आज समभाव ,साधन कभी जो ॥
आलोचना कर, स्व दोषों को खोजूं,
उसी क्षण किसी मित्र का, फ़ोन आया,
कि धर्म क्रिया में, खलल हो गया,
मैं दास मन का...
सुनूं आज पावन, प्रवचन गुरु का ॥
नया ज्ञान सीखूं, चितारूँ शुरू का ॥
उसी दम जो व्यापार, का मोह जागा,
की सारा नजारा, बदल ही गया,
में दास मन का...
कभी ना की कोशिश, नियंत्रण की मन पे ॥
लगाता है डाके ये, आतम के धन पे,
किया वश में मन को, गुरु राम ने जो,
दर्शन से उनके, 'कपिल' तिर गया ॥
मैं दास मन का...
लेखक
कपिल देवड़ा
रतलाम (म.प्र.)
मो. न. 8989897294