मैं मोहनी मुरलिया थामे रखता सांवरिया,
श्याम के अधरों पे सजती हु श्याम के संग में कब की हु,
तू काहे को अकड़ा है मेरा रुतबा बड़ा है,
मैं मुकट हु चमकता कान्हा को प्यारा लगता,
हीरे मोती और पन्हे जड़े है जाने कितने,
जो श्याम के शीश चढ़ा है मेरा रुतबा बड़ा है,
पहले काँटा छीला रगड़ा सीने में कई छेद किये,
कुछ भी न कहा जब जखम मिला बजती ही रही हर दर्द लिए,
इतना कुछ सेह कर भी तो मीठी तन सुनाती हु,
जब मुझे गुण गुनाये कान्हा किस्मत पर इतराती हु,
जेहलना बहुत पड़ा है मेरा रुतबा बड़ा है
मैं सोना था जला जला कर सारा खोट मिटा डाला,
चोट खाई मैंने बार बार और मेरा इक पत्र बना गाला,
सोनी के हाथो में गया उस ने की मीणा कारी,
ज्वारहाट झड़े भांत भांत के मेरी बना दी छवि न्यारी,
कहे अज़ाब गड़ा है मेरा रुतबा बड़ा है ....
मैं संगीत की शान मेरे स्वर कान में मिश्री गोले,
सबका साथ निभाती हु मेरे तन से तन मन ढोले,
श्याम भजाये मधुर तान फिर हर कोई श्याम का हो ले,
मीठी मीठी धुन मेरी सब को इक तार पिरोले,
रंग भक्ति का चढ़ा है मेरा रुतबा बड़ा है,
श्याम सजा कर मुझे शीश पर दर दरबार पधारे,
मेरे ही गुण गाये सभी मेरी ही और निहारे,
हो तारीफ मेरे रत्नो की कीमत मेरी विचारे,
तुझे लगा कर कमर में कमर नजर तुझपे न मारे,
तुझे रहता उखड़ा है मेरा रुतबा बड़ा है,
जो श्याम के शीश चढ़ा है मेरा रुतबा बड़ा है
मुकट बिना मेरा शीश अधूरा मुरली बिना नंदलाला,
शीश मुकट सब गाये आरती नाम है मुरली वाला,
दोनों ही प्राण प्रिये दोंनो को ही मैंने सम्बाला,
सरल तुम्हारे जीवन को लो मैंने अब कर डाला.
दोनों का रुतबा बड़ा है ख़त्म हुआ जे झडा है,