खेलत श्याम मातु सुख पावत
खेलत श्याम मातु सुख पावत,
तनु पीत झगुलिया कमर करधनी,
मुनि मन मोहत हियँ हर्षावत,
खेलत श्याम मातु सुख पावत-----
तुतलात कछु बोलत मधुरी,
गिरत परत उठि किलकत धावत,
खेलत श्याम मातु सुख पावत--------
बीच अधर दुई दंतुल सोहत,
लुढ़कत ठुमकत नूपुर बजावत,
खेलत श्याम मातु सुख पावत-------
मातु हरषि सिसु लेत बलैया,
गोंद उठाई उर कंठ लगावत,
खेलत श्याम मातु सुख पावत ------
जो सुख सुर मुनि सपनेहुँ दुर्लभ,
सोई सुख मैया यशोमति पावत,
खेलत श्याम मातु सुख पावत-----।।
रचना आभार: ज्योति नारायण पाठक
वाराणसी