टीडा गेला दो- दो बहना
दरबार अनोखा, है क्या कहना
भगतो के बनते जहाँ हैं बिगड़े काम
ढांढण धाम,वो है ढांढण धाम
शीशवाल से चलकर दादी ढांढण धाम में आई
तब से टीडा गेला माँ ढांढणवाली कहलायी
सूरज चंदा जिसके सत के प्रमाण
ढांढण धाम,वो है ढांढण धाम
धन्य धन्य ढांढण की धरती
धन्य धन्य शेखावाटी
उस माटी को है प्रणाम
जहाँ रहती है मेरी दादी
कण कण में गूंजे जहाँ दादी का नाम
ढांढण धाम,वो है ढांढण धाम
जिसके चरणो की धूलि को सारी दुनिया तरस रही
दादी के मंदिर में वो अमृत की धारा बरस रही
देवता भी करते जिसकी महिमा बखान
ढांढण धाम,वो है ढांढण धाम
एक यही दरबार जहाँ से कोई ना खाली लौटा
"सौरभ मधुकर" ढांढण में सोयी किस्मत जगते देखा
दुःख और दर्द से मिलता आराम
ढांढण धाम,वो है ढांढण धाम
टीडा गेला दो- दो बहना
दरबार अनोखा,है क्या कहना
भगतो के बनते जहाँ हैं बिगड़े काम
ढांढण धाम,वो है ढांढण धाम
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