शरण गोपाल की रह कर,
तुझे किस बात की चिंता,
तू कर चिंतन मगन मन से,
न कर दिन रात की चिंता,
शरण गोपाल की रह कर,
हुआ था जन्म जब तेरा दिया था दूध आंचल में,
किया यदि श्याम को भोजन न कर परभात की चिंता,
शरण गोपाल की रह कर.....
वो देते जल के जीवो को वो देते थल के जीवो को,
वो देते नव के जीवो को उसे हर जीव की चिंता,
शरण गोपाल की रह कर.......
सहारा लेके गिरधर का आस क्यों करता लोगो की,
हाथ प्रेमी वही फैला जिसे हर हाथ की चिंता,
शरण गोपाल की रह कर.....
अंजलि कर सुमन लेके किया अर्पण प्रभु जीवन,
दर्श शबरी ने पाया था करि रघुनाथ की चिंता,
शरण गोपाल की रह कर,