देख लिया यह जगत निगोड़ा, देख लिए सब अपने,
इक इक ने मुझको तड़पाया, तोड़ दिए सब सपने ।
एक आस लिए स्वामिनी जू की, चौखट पर है जाना,
अबके लाड़ली हाथ पकड़ के, मोहे रख लेंगी बरसाना ॥
वास देदो किशोरी जी बरसाना,
छोडो छोडो जी छोडो जी तरसाना ।
ना मांगू बैकुंठ लाड़ली, ना मैं मांगू मुक्ति,
चरण तेरे में प्रीती हो जाए, ऐसी दे दो भक्ति ।
राधा राधा रटूं, यह सीखा जाना,
वास देदो किशोरी जी बरसाना ॥
कौन राहो पहुंचाए स्वामिनी सूझत नहीं किनारा,
बृज की रज में रज हो जाऊं हो जाए पार उतारा ।
मर ना जाऊं जल्दी से आ जाना,
वास देदो किशोरी जी बरसाना ॥
मेरे मस्तक हाथ धरो तो बन जाए वो रेखा,
‘श्री हरी दासी’ ने संतो की आँखों में जैसा देखा ।
मैं भी देखू मैं देखूं वो बरसाना,
वास देदो किशोरी जी बरसाना ॥
स्वर : श्री हरी दासी (हैप्पी शर्मा, फगवाड़ा)