ग्वालिन क्यों तू मटकी तू कैसे पे मटकी

ग्वालिन क्यों तू मटकी तू कैसे पे मटकी,
कहा तू जा रही मटकी मटकी धर मट कांपे मटकी,

तू तो भई मधु मस्त गुजरियाँ चाल चले मस्तानी,
कह दू कोई रोग लगो है कह तू बई बोरानी,
पहले घर तू मटकी फिर बाहर तू मटकी
ग्वालिन क्यों तू मटकी तू कैसे पे मटकी,

रोज रोज मेरे मार्ग पे चुप नि कस के जावे,
तनक न रही चोखावे मोह को ऐसे ही बहकावे,
उलटी कर दे मटकी वही पे दर दे मटकी,
ग्वालिन क्यों तू मटकी तू कैसे पे मटकी,

आज अकेली मिल गई तेरा ददगोरास लुटवाऊ,
अफडा तफडी करे तो सबरे ग्वालन को भुलवाऊ,
नहीं न छोड़ू मटकी तेरी फोड़ू मटकी,
ग्वालिन क्यों तू मटकी तू कैसे पे मटकी,

कभू भूल के यह मार्ग पे आइयो मति अकेली,
पागल कहे वनवारे ते नाये ब्रिज रस गुर की देरी,
तेरी पटकी मटकी तेरी चटकी मटकी,
ग्वालिन क्यों तू मटकी तू कैसे पे मटकी,
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