प्रेम भक्ति और रंगरस की सरिता बहती जाय,
ब्रजमंडल में दिव्य धाम यह बरसाना कहलाये ।
कहे ‘मधुप’ जब जब भी मोहे, याद बरसाना आय,
मन मेरा मन मोर रंगीला, उड़ता उड़ता जाय ॥
मन उड़ गयो पंख लगा के, बन मोर पहुँच्यो बरसाने ।
संकेत वन और प्रेम सरोवर,
राधा बाग और पीली पोखर ।
फिर गयो महल रंगीली में,
कलगी और पंख वो रंगवाने ॥
मन उड़ गया पंख लगा के...
सज धज कर या ने भरी उडारी,
जा पहुँचयो महल अटारी ।
श्री जी मंदिर लाड़ली लाल के,
लगा झूम झूम दर्शन पाने ॥
मन उड़ गया पंख लगा के...
सांकरी खोर और गहवर वन,
मान गड़ी में डोले तन मन ।
आकरके मोरकुटी में,
लगा पंख रंगीले लहराने ॥
मन उड़ गया पंख लगा के...
मोरकुटी में संत शरण में,
बड़ो ही आनंद गुरु चरनन में ।
सुन गीत ‘मधुप’ के रसीले,
लगो मोर नाचने और गाने ॥
मन उड़ गया पंख लगा के...
(सर्वाधिकार लेखक आधीन सुरक्षित। भजन में अदला बदली या शब्दों से छेड़-छाड़ करना सख्त वर्जित है)