ब्रह्म जीव माया तत्व, गोविंद राधे।
तीनों हैं अनादि अनंत बता दे॥
अर्थ - तीन तत्त्व हैं - ब्रह्म, जीव, माया। तीनों तत्त्व अनादि, अनन्त हैं। अनादि माने जिसका जन्म न हो, प्रारम्भ न हो, आदि न हो। सदा से हो और अनन्त माने जिसका अन्त न हो, सदा रहे।
ब्रह्म जीव चेतन गोविंद राधे।
ब्रह्म शक्ति जीव याते अंश बता दे॥
अर्थ - तीन अनादि तत्त्व हैं जिनमें दो तत्त्व - ब्रह्म और जीव ये दोनों चेतन हैं। जीव ब्रह्म की शक्ति है और शक्ति होने से इसको ब्रह्म का अंश कहते हैं।
ब्रह्म शक्ति माया जड़ गोविंद राधे।
जीव माया शासक ब्रह्म बता दे॥
अर्थ - ब्रह्म की एक शक्ति जीव, वो चेतन है। दूसरी शक्ति माया, वो जड़ है। जीव और माया दोनों का शासक भगवान् है। दोनों भगवान् के अण्डर में हैं।
सर्वशक्ति स्वामिनी गोविंद राधे।
एक शक्ति परा अंतरंगा बता दे॥
अर्थ - भगवान् की अनन्त शक्तियाँ हैं। उनमें तीन शक्तियाँ प्रमुख हैं। एक शक्ति का नाम परा शक्ति, एक जीव शक्ति और एक माया शक्ति। जितनी शक्तियाँ हैं भगवान् की, सब परा शक्ति के आधीन रहती हैं। यह सभी शक्तियों की स्वामिनी है।
ब्रह्म विज्ञ सुखकन्द गोविंद राधे।
जीव अज्ञ मायाधीन सदा ते बता दे॥
अर्थ - ब्रह्म सर्वज्ञ है, मायाधीश है, सुखरूप है। जीव अज्ञ है, एवं सदा से मायाधीन है अतः सदा दुःखी है।
ब्रह्म के अनेक रूप गोविंद राधे।
सर्व रूप आश्रय कृष्ण बता दे॥
अर्थ - ब्रह्म के अनेक रूप हैं। निराकार भी है, साकार भी है, अनेक अवतार भी हैं। लेकिन उन सबके अंशी, आश्रय भगवान् श्रीकृष्ण हैं। बाकी सब उनके स्वांश हैं।
श्रीकृष्ण प्राप्ति से ही गोविन्द राधे।
जीव को दिव्य सुख प्राप्त हो बता दे॥
अर्थ - जीव भगवान् का अंश है। और भगवान् आनन्द स्वरूप हैं। इसलिये जीव को वास्तविक दिव्य सुख, अपने अंशी भगवान् श्रीकृष्ण से ही प्राप्त हो सकता है।
अर्थ - भगवान् श्रीकृष्ण इन्द्रिय, मन, बुद्धि से परे हैं। उन्हें किसी साधन के बल पर नहीं प्राप्त किया जा सकता उनकी कृपा से ही उनको प्राप्त किया जा सकता है।
श्रीकृष्ण कृपा हेतु गोविन्द राधे।
साधन केवल भक्ति बता दे॥
अर्थ - श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त करने के लिये श्रीकृष्ण भक्ति ही एकमात्र साधन है। जिससे अन्तःकरण शुद्ध होगा और भगवत्कृपा मिलेगी। कर्म-धर्म, योग, ज्ञान, तपश्चर्या से नहीं।
भक्ति मन से हो नित्य गोविंद राधे।
भाव निष्काम अनन्य बता दे॥
अर्थ - भक्ति में चार बातें प्रमुख हैं। भक्ति मन को करनी है इन्द्रियों को नहीं, निरन्तर करनी है, निष्काम भाव से करनी है और भक्ति अनन्य हो।
इमि मन शुद्ध हो तो गोविंद राधे।
मन को स्वरूप शक्ति दिव्य बना दे॥
अर्थ - इस प्रकार भक्ति करने से अन्तःकरण शुद्ध हो जायगा। फिर भगवान् की कृपा होगी और स्वरूप शक्ति (परा शक्ति) द्वारा गुरु आपके मन इन्द्रिय को, जो आपने साधना द्वारा शुद्ध किया है, उसे दिव्य बनायेगा।
तब दिव्य मन में दे गोविंद राधे।
गुरु ह्लादिनी सार प्रेम बता दे॥
अर्थ - भगवान की अंतरंगा शक्ति जो है ह्लादिनी शक्ति उसका भी सारभूत तत्त्व है प्रेम। वो दिव्य प्रेम गुरु देगा जब अंतःकरण का पात्र बन जाएगा।
तब जीव पा ले निज गोविन्द राधे।
नित्य दासत्व अधिकार बता दे॥
अर्थ - जब वो दिव्य प्रेम मिल जायगा गुरु का दिया हुआ, वो कमाई से नहीं मिलेगा, वो कृपा से मिलेगा। तब गोलोक में हम भगवान् की नित्य सेवा करेंगे जो हमारा सदा का छिना हुआ अधिकार था, माया ने छीन रखा था, वो सदा के लिये मिल जायगा।