ना जाऊ मैं काबा काशी,
ना ढुलूग बनु सन्यासी अंतर् मन सुख दान मन में चारो धाम मेरे मन में वैसे साई राम,
मेरे घर में वसे साई राम,
मेरे मन में है चारो धाम,
कोई बनाये मंदिर मस्जिद कोई बनता फकीरा,
कोई धन का बिस्तर बांदे संचे करता हीरा,
आँख मूंद कर देखो घर मेरा साई का धाम
मेरे मन को मिला दे श्याम मेरे मन में वसे साई राम,
मेरे घर में वसे साई राम........
ना काबू से कड़वा बोलू न मैं करू चतुराई,
सब प्राणी में साई वसे है किस की करू बुराई,
रोम रोम साई गुण गाये जीवन काबू का,
मुख में हो सदा साई नाम मेरा मन हो साई का धाम,
मेरे मन को मिला विश्राम मेरे मन में वैसे साई राम,
मेरे घर में वैसे साई राम,