जय हो केलाशी

भाग तुम हो बहार तुम हो,
फूल तुम हो हार तुम हो,
जीत तुम हो हार तुम हो
आर तुम हो पार तुमहो
धरती अम्बर वायु अग्नि तुम ही जल की धरा
तीन लोक में पा सका न कोई पार तुम्हारा,
जय हो केलाशी जय हो केलाशी,

तेरी लोह से हर प्राणी की जलती जीवन बाती,
तेरी ईशा बिन कोई बाती हिल ना पाती,
बीज तुम हो फल तुम हो
मुश्किल तुम हो हल तुम हो,
चोटी तुम हो तल तुम हो आज तुम हो कल तुम हो,
श्रृष्टि के कं कं में तेरा ही पसारा
तीन लोक में पा सका न कोई पार तुम्हारा,
जय हो केलाशी जय हो केलाशी,

तुम ही तेह करते हो रूतुयो का आना जाना,
तुम ही जानो कैसे कीचड़ में कमल खिलाना,
रूप तुम हो काया तुम धुप तुम ही छाया तुम हो,
खोया तुम हो पाया तुम हो लीला तुम हो माया तुम ही,
नव ग्रहो में गाती है तुम से तुमसे भ्र्मांड सारा,
तीन लोक में पा सका न कोई पार तुम्हारा,
जय हो केलाशी जय हो केलाशी,

महिमा तेरी मैं अज्ञानी केह सकता हु कैसे,
सागर ने वो लिख है डाला तुमने लिख्या जैसे,
उतर तुम हो सवाल तुम हो,
सुख्श्म तुम हो विशाल तुम हो,वार तुम हो ढाल तुम हो
जीवन तुम हो काल तुम हो
सब को देते मुक्ति तुम ही देते जन्म दोबारा
तीन लोक में पा सका न कोई पार तुम्हारा,
जय हो केलाशी जय हो केलाशी,
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