भीगी पलकों तले सेमी ख्वाइश पले,
मंजिले लापता श्याम कैसे चले,
ऐसे में सँवारे तू बता क्या करे गावह अब भी हरा जाने कैसे भरे,
भीगी पलकों तले सेमी ख्वाइश पले,
देती ही रहती है दर्द दिल लगी,
जाना अब सँवारे क्या है ये जिंगदी,
जिंगदी वो नदी उची लेहरो भरी,
तैरने का हमे कुछ तजुर्बा नहीं,
अब पानी गले ना किनारा मिले,
मंजिले लापता श्याम कैसे चले,
हाल बे हाल है आँखों में है नमी,
वक़्त भागे बड़ा हसरते है थमी,
रहते कुछ नहीं आजमाती कमी,
सुखी अरमानो की टूटी फूटी जमीन,
करदे तू इक नजर तृप्त वर्षा पड़े
मंजिले लापता श्याम कैसे चले,
दास की देव की किस की तोहीं है,
भक्त की ये दशा क्यों वो गम गीन है,
बढते मेरे कर्म पर दशा हीं है,
पूछते है पता वो कहा लीन है,
हाल पे कदमो का जोर भी न चले,
मंजिले लापता श्याम कैसे चले,