धन जोबन और काया नगर की,
कोई मत करो रे मरोर॥
क्यूँ चले से आंगा पांगा,
चिता बिच तने धर देंगे नंगा,
एक अग्नि का लेके पतंगा,
तेरे फिर जाएंगे चारो ओर,
॥ धन जोबन और काया...॥
सिराणे खड़ी तेरी माई रोवे,
भुजा पकड़ तेरा भाई रोवे,
पायाँ खड़ी रे तेरी ब्याहि रे रोवे,
जिसने ल्याया बाँध के मोल,
धन जोबन और काया...॥
पांच साथ तेरे चलेंगे साथ में,
गोसा पुला लेके हाथ में,
इक पिंजरी का ले बांस हाथ में ,
तेरे देंगे सर में फोड़,
धन जोबन और काया...॥
शंकर दास ब्राम्हण गावे,
सब गुणियों को शीश झुकावे,
अपणा गाम जो खोली बतावे,
वो तो गया रे मुलाजा तोड़,
धन जोबन और काया नगर की,
कोई मत करो रे मरोर॥