नश्वर काया की सेवा में जन्म विरथा हो जावे
तन का नित शिंगार करे पर मन में न रह जावे
जन्म धरत ही शोर मचावे मरत ही सुखत खावे
माटी की ये काया आखिर माटी में मिल जावे
तन पिंजरे से प्राण पखेरू जब बहार उड़ जावे
घर वाली द्वारे तक जावे बेटा अग्नि लगावे
रोने वाले रोते रहते जाने वाला जावे
सुंदर काया भी मरघट पे राख राख हो जावे
नश्वर काया की सेवा में जन्म विरथा हो जावे
जीवन का ये उज्वल दीपक पल पल बूजता जावे
मानव मन के मेहल बनावे तन कुटिया गिर जावे
बचपन हो या होके जवानी मौत रहम न खावे
चेतन दूजी काया धारे पेहली मरघट जावे
नश्वर काया की सेवा में जन्म विरथा हो जावे