सोने वाले जाग जा

किस धुन में बेठा वन्वारे तू किस नव में मस्ताना है
वो सोने वाले जाग जा संसार मुसाफिर खाना है

क्या लेकर के आया था जग में फिर क्या लेकर जाएगा,
मुठी बांधे आया जग में हाथ पसारे जाना है
वो सोने वाले जाग जा संसार मुसाफिर खाना है

कोई आज गया कोई कल गया कोई चंद रोज में जाएगा
जिस घर से निकल गया पंशी उस घर में फिर नही आना है
वो सोने वाले जाग जा संसार मुसाफिर खाना है

सूत मात पिता बांधव नारी धन धान यही रह जाएगा
यह चंद रोज की यारी है फिर अपना कौन बेगाना है
वो सोने वाले जाग जा संसार मुसाफिर खाना है

कहे दवेंदर हरी नाम जपो फिर ऐसा समय न आएगा
पा कर कंचन सी काया फिर हाथ मसल पश्ताना है
वो सोने वाले जाग जा संसार मुसाफिर खाना है
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