कान्हा रे सुन विनती मेरी

कान्हा रे सुन विनती मेरी एक झलक दिखला दे
मेरे तपते अंतर में तेरी प्रीत की नीर बहा दे..
एक झलक दिखला दे...

सूर बनके गाउँ मैं या मीरा बन कर नाचूँ
गोपी बनकर पाऊँ मैं या उधौ बन खत बाँचू
किस विधि होंगे दर्शन तेरे, गिरह ये सुलझा दे..
एक झलक दिखला दे...

कान्हा रे सुन विनती मेरी एक झलक दिखला दे...

गैया बनके साथ चलूँ या यमुना बन पग वारूँ
सुदामा बनके हाथ गहूँ या राधा बन सब हारूँ
कौन रूप जो तोहे रिझाये, मुझको ये बतला दे
एक झलक दिखला दे..
एक झलक दिखला दे...

कान्हा रे सुन विनती मेरी एक झलक दिखला दे
मेरे तपते अंतर में तेरी प्रीत की नीर बहा दे....
एक झलक दिखला दे.....
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