क्यों गरव करे इस काया का तेरी काया रहेगी ना अरे इंसान
काया तेरी फुल समान क्यों गरवाया है नादान
सदा ना रहेगा इन बागो में दिन का तू है मेहमान
जब टूट पड़ेगा डाली से फिर खुशबू रहेगी ना अरे इंसान
मल मल काया तू धोए देख रूप को मन मोहे
खाक मिट्टी का बना यह पुतला अंत समय मिट्टी होबै
अब मौज मना ले पल भर की यह मौसम रहेगा ना अरे इंसान
छोड़ कपट के सब धंधे नेक राह पर चल बंदे
पार कभी ना होते हैं वह झूठी वासना के फंदे
यहां सत की नाव सदा चलती अब झूठी चलेगी ना अरे इंसान
सतसंगत से ध्यान लगा गीत प्रभु के तोता गा
इसी में तेरी मुक्ति होगी ज्योति हृदय में ऐसी जगा
अब जिस पर हाथ हरि का है उसपे बिपदा रहेगी ना अरे इंसान
प्रेषक नरेंद्र बैरवा गंगापुर सिटी
Mo.8,05307813