हमें तो लूट लिया साँवरे सांवरिया ने,
कृष्णा कन्हैया ने बाँसुरी बजईया ने,
सुहानी रात थी और चाँदनी भी छाई थी,
सलोने श्याम ने जब बाँसुरी बजाई थी,
कोई अनोखी तान भर के जब सुनाई थी,
तो चारो और प्रेम ज्योत जगमगाई थी,
सभी लताएं लगी झूमने बहारो में,
अजब हलचल सी मची चाँद और सितारो में,
बजा रहे थे मधुर बाँसुरी इशारो में,
वो मंद मंद पवन सुन के तान बहने लगी,
गले लताओ के मिल मिल के ऐसे कहने लगे,
हमें तो लूट लिया साँवरे साँवरिया ने,
कृष्णा कन्हैया ने बाँसुरी बजईया ने,
रसीली मधुर तान जिसके पड़ी कानो में,
वो होके प्रेम बिहल खो गया तारानो में,
कुछ ऐसा जादू भरा था किशन की तानो में,
ऋषि मुनि भी लिए मोह बिया बानो में,
लगी समाधी गयी टूट ध्यान घूम गया,
ख्याल प्रेम का आ आके मन को चुम गया,
जमी भी झूम गई आसमान भी झूम गया,
सभी गुफाए गिरी कंदरा पहाड़ो से,
आवाज़ यही निकलती थी वन के झाड़ो,
हमें तो लूट लिया साँवरे साँवरिया ने,
कृष्णा कन्हैया ने बाँसुरी बजईया ने,
वो तान शिव ने सुनी धरना ध्यान भूल गये,
स्वयं को विष्णु भी श्रष्टि का ज्ञान भूल गये,
वो करना वेदो का बखान ब्रह्मा भूल गये,
सुनी नारद ने तो विणा की तान भूल गये,
सुनके धुन मुरली की वो देव सभी हर्षाए,
देव बालाए लिए संग देखने आए,
उतारी आरती प्रभु की फूल बरसाए,
सदा ‘फूलसिंग’ का ध्यान तेरे चरणन में,
रही है गूँज नाथ आज त्रिभुवन में,
हमें तो लूट लिया साँवरे साँवरिया ने,
कृष्णा कन्हैया ने बाँसुरी बजईया ने,
हमें तो लूट लिया साँवरे सांवरिया ने,
कृष्णा कन्हैया ने बाँसुरी बजईया ने,