कालंद्री कल कल करे,
बोलत कोयल मोर,
पनघट पंछी बुलाते,
आवो नवल किशोर।
बैरिन भई घटा सावन की,
बरस बरस तरसाये,
पिया गए परदेस सखी री,
सावन बीता जाए।
बैरिन भई घटा सावन की.....
कोयल बोली, सावन आया,
काली घटा ने जल बरसाया,
खबर पिया की कोइ ना लाया,
झूले पड़ गए वृन्दावन में,
झूला कौन झुलाये,
पिया गए परदेस सखी री,
सावन बीता जाए।
सूना सावन सूने नैना,
सूना श्याम बिना अब रहना,
कोई दिल की बात सुने ना,
कोयल पपीहा बैठ कदम पर,
गीत मल्हार सुनाये,
पिया गए परदेस सखी री,
सावन बीता जाए।
काली घटा बिरज में छाई,
तीज हरियाली लेकर आई,
ब्रिज की लता पता हरषाई,
सांवन बीत गए बहुतेरे,
मधुर श्याम नहीं आये।
पिया गए परदेस सखी री,
सावन बीता जाए।