सीता राम, सीता राम,
रे मन भज तुम सीता राम,
तू दयालू दीन हों ,तू दानी तू भिखारी,
हों प्रसिद्ध पातकी, तू पाप पुंज हारी।।
सीता राम, सीता राम,
रे मन भज तुम सीता राम।
नाथ तू अनाथ को, अनाथ कौन मो सो,
मो समान आर त नाहीं, आर ति हर तो सो।
तू दयालू दीन हों...
सीता राम, सीता राम,
रे मन भज तुम सीता राम।
ब्रम्ह तू होने जीव, तू है ठाकुर हों चेरो,
तात मात गुरु सखा, तू सब बिधि हि तू मेरो।
तू दयालू दीन हों...
सीता राम, सीता राम,
रे मन भज तुम सीता राम।
तो ही मो ही नाते अनेक, मानिये जो भावे,
ज्यों त्यों तुलसी कृपालु, चरण सरन पावे।
तू दयालू दीन हों ,तू दानी तू भिखारी,
हों प्रसिद्ध पातकी, तू पाप पुंज हारी।।
सीता राम, सीता राम,
रे मन भज तुम सीता राम।।