प्रभु के सामने सर को झुकाओ काफी है,
धूप चंदन न सही मन में भाव काफी है....
नाना व्यंजन से नही रीझते हैं गिरधारी,
उन्हें तो प्रेम का चावल ही आधा काफी है.....
भाव के भूखे हैं और कोई उन्हें क्या देगा,
मन मेँ हो प्रेम तो छिलको का भोग काफी है....
लाख उनको बुलाओ वो कभी न आएंगे,
पूर्ण श्रद्धा से सिर्फ आधा नाम काफी है......
गीतकार/गायक-राजेन्द्र प्रसाद सोनी