जितने तारे अंबर में

जितने तारे अंबर में मेरी चुनरी में जड़वा दे ओ,
मेरे भोले भंडारी मेरी लहंगा चुनरी लाई दे ओ॥

रोटी बनाओ शर्म लागे मेरे घर होटल खुल वायदे ओ,
मेरे भोले भंडारी मेरी लहंगा चुनरी लाई दे ओ॥

पानी खीचू शर्म लागे मोहे, घर सिमरी लगवाए दे ओ,
मेरे भोले भंडारी मेरी लहंगा चुनरी लाई दे ओ॥

कपड़े धो शर्म लगे मोहे, मेरे घर धोबी भी लगवा दे ओ,
मेरे भोले भंडारी मेरी लहंगा चुनरी लाई दे ओ॥

गोबर उठा हूं शर्म लगे, मेरे घर भंगी लगवाए दे,
मेरे भोले भंडारी मेरी लहंगा चुनरी लाई दे ओ॥
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