माखन दूंगी रे कन्हैया जरा मुरली तो बजा

माखन दूंगी रे कन्हैया जरा मुरली तो बजा,
माखन दूंगी रे.....

ऐसी तो बजा जैसी बागों में बजाई थी,
बागों में बाजार तूने मालिनी को सुनाई थी,
बागों की कोयल कुकत कुकत जाए,
माखन दूंगी रे....

ऐसी तो बजा जैसी जमुना पर बजाई थी,
जमुना पर बाजए तूने धोवन को सुनाई थी,
जमुना का नीर बेहता बेहता रुक जाए,
माखन दूंगी रे.....

ऐसी तो बजा जैसी बंसीवट बजाई थी,
बंसीवट बजाए तूने सखियों को सुनाई थी,
ब्रज की गुजरिया सारी हस मुस्काए,
माखन दूंगी रे.....

ऐसी तो बजा जैसी मधुबन में बजाई थी,
मधुबन मैं बजाए तूने ग्वालो को सुनाई थी,
ब्रज की यह धरती सारी हरियाली है जाए,
माखन दूंगी रे.....

ऐसी तो बजा जैसी वृंदावन बजाई थी,
वृंदावन बाजाए गोकुल में सुनाई थी,
तन मन की सुध बुध सारी बिसराये,
माखन दूंगी रे....

ऐसी तो बजा जैसी निधिवन में बजाई थी,
निधिवन में बाजाए तूने रास रचाई थी,
बरसाने की राधिका का दिल लग जाए,
माखन दूंगी रे....
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