हे केवट तुम उतराई लो

हे केवट तुम उतराई लो,
तूने गंगा पार उतारा है,
क्यों शर्मिंदा करते भगवन,  
यह सब कुछ माल तुम्हारा है,
हे केवट तुम उतराई लो.....

यह सीता जी की मुंदरी है,
मैं कैसे इसे ले सकता हूं,
परिवार सहित दर्शन पाए,  
वह धन्य धन्य भाग हमारा है,
हे केवट तुम उतराई लो.....

यह सीता जी की मुंदरी है,  
ना लेने से इनकार करो,
हमे गंगा पार उतारा है,
ये ही एहसान तुम्हारा है,
हे केवट तुम उतराई लो.....

मैं समझ गया यह थोड़ा है,  
इसलिए मना तुम करते हो,
जो भी था सब कुछ दे डाला,  
बाकी का रहा उधारा है,
हे केवट तुम उतराई लो.....

गर देना है तो दो भगवन,
चरणों में तुम्हारे ध्यान रहे,
मैंने गंगा पार उतारा है,
तुम भव से पार लगा देना,
हे केवट तुम उतराई लो.....
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