श्लोक
सर्व कला में निपुण जो, रचयिता जगत के महान।
वंदन उनको बारबार, श्री विश्वकर्मा भगवान॥
हो थाकी मूरत प्यारी घणी लागे,
म्हानै विश्वकर्मा जी दातार,
विश्वकर्मा महाराज, म्हारा चारभुजा रा सरकार।।
सोने चांदी सूं शिल्प रचायो, गढ़या स्वर्ग रा द्वार,
थारा जतन सूं जग चमक्यो, थारा हुकम अपार।।
शंभु के आग्रह पे आपने लंका दी थी बनाए।
लंका दी थी बनाए अपने हीरा मोती जड़ाए।।
हो थाकी मूरत प्यारी लागे, म्हानै विश्वकर्मा जी महाराज,
कृष्ण कन्हैया का आग्रह पर, द्वारिका दिन्ही बनाए।
द्वारिका दिन्ही बनाए, जिम सोना चांदी जड़ाए।।
थकी मूरत प्यारी लागे,म्हारा विश्वकर्मा दातार
विजयनगर में थानकों मंदिर बनियों,थे हो पुष्कर राज। थे हो पुष्कर राज दाता ओ थे हो पुष्कर राज।।
थाकी मूरत प्यारी लागे, म्हानै विश्वकर्मा जी महाराज,
कीजा आपको भजन बनायो, गावे है हर बार,
सब भक्ता की लाज राखजो, करजो भाव सों पार।।
थाकी मूरत प्यारी लागे, म्हारा विश्वकर्मा दातार
[अंतिम दोहराव – मुखड़ा रिपीट]
शैली: भक्ति गीत (मारवाड़ी लोकभाव), धीमी लय
भाषा: हिंदी/मारवाड़ी मिश्रित
संगीत वाद्य सुझाव: हारमोनियम, तबला (केहरवा), मंजीरा, पखावज
भाव: श्रद्धा, विनम्रता, विश्वकर्मा भगवान का यशगान