अगर तुम्हारा खाटू में, दरबार नहीं होता,
अगर तुम्हारा खाटू में, दरबार नहीं होता,
ये बेड़ा गरीबों का, कभी पार नहीं होता,
ये बेड़ा गरीबों का, कभी पार नहीं होता.......
फंस जाती मेरी नैया, मझधार में रह जाते,
लहरों के धक्के से, कब के ही बह जाते,
अगर बचाने वाला, मेरा सरकार नहीं होता,
ये बेड़ा गरीबों का, कभी पार नहीं होता,
ये बेड़ा गरीबों का, कभी पार नहीं होता........
दो वक्त की रोटी के, लाले ही पड़ जाते,
दुःख से मेरे दिल में, छाले ही पड़ जाते,
अगर तुम्हारे जैसा, वहां दातार नहीं होता,
ये बेड़ा गरीबों का, कभी पार नहीं होता,
ये बेड़ा गरीबों का, कभी पार नहीं होता.......
खुशियां मेरी जीवन की, हाथों से फिसल जाती,
ये होली दिवाली तो, बस यूं ही निकल जाती,
अगर तेरी नजरों में, मेरा परिवार नहीं होता,
ये बेड़ा गरीबों का, कभी पार नहीं होता,
ये बेड़ा गरीबों का, कभी पार नहीं होता.......
मेरी इज्जत का गहना, बिक जाता सस्ते में,
बनवारी भक्त तेरा, लूट जाता रस्ते में,
अगर हमेशा तू, लीले असवार नहीं होता,
ये बेड़ा गरीबों का, कभी पार नहीं होता,
ये बेड़ा गरीबों का, कभी पार नहीं होता........