जयकार आदि बजरंगी की जो सच्चा प्रेम लगाता है ।
वह भवसागर की धारा से अनायास पार हो जाता हैं ।। 1 ।।
तुम रामचंद्र के सेवक बन, लंका को आतुर धाये थे ।
लंका सा कोटि जलाया था, सीता का दर्शन पाये थे ।। 2 ।।
लक्षिमण को शक्ति लगने पर, द्रोणागिरी कैसे लाये थे।
श्री भरतलाल को अवधपुरी मे, मीठी बचन सुनाये थे।। 3 ।।
निज बालापन की याद करो, जब सूरज को मुख मे रखा।
सब देवों ने वरदान दिया, हनुमान नाम उनने रखा ।। 4 ।।
श्री तुलसीदास पर कृपा करी, जो ऐसी कविता बतलाई।
लिख दिया सार रामायण मे, जो और ग्रंथ में ना पाई ।। 5 ।।
चरणों में प्रेम लगाता हूं, हे स्वामी दास बना लेना ।
कटि जाये पास भव बंधन का, भगवान का दास बना देना ।। 6 ।।
लिखने पढ़ने के अंदर मे, इस तरह बने सुंदरताई ।
जैसे रजनी गति सूर्योदय से, नहि रहे तिमिर की तरुणाई।। 7 ।।
वानर दल के सरदार हो तुम, बजरंग तुम्हारी जय होवै।
भक्ति के अटल भंडार हो तुम, बजरंग तुम्हारी जय होवै ।। 8 ।।
तुम क्षमाशील सुखसागर हो,
सब नीति निपुन नय नागर हो,
सब रिद्धि सिद्धि के आगर हो, बजरंग तुम्हारी जय होवै ।
भक्ति के अटल भंडार हो तुम, बजरंग तुम्हारी जय होवै ।। 9 ।।
सीता के बाल समान हो तुम,
दुष्टों के काल समान हो तुम,
भक्तों के प्राणाधार हो तुम, बजरंग तुम्हारी जय होवै ।
भक्ती के अटल भंडार हो तुम, बजरंग तुम्हारी जय होवै ।। 10 ।।
कपि पति के संकट भ्राता हो,
लक्षिमण के जीवन दाता हो,
तुम सर्व शक्ति सुखदाता हो, बजरंग तुम्हारी जय होवै ।
भक्ति के अटल भंडार हो तुम, बजरंग तुम्हारी जय होवै ।। 11 ।।
कलियुग में कोई काम नहीं,
जो हो तुमसे बलधाम नहीं,
सब करके भी अबिकार हो तुम, बजरंग तुम्हारी जय होवै ।
भक्ति के अटल भंडार हो तुम, बजरंग तुम्हारी जय होवै ।। 12 ।।
गोविंद गुलाम तुम्हारा है,
तुम तक ही एक सहारा है,
हमको भी तुम्हारा सहारा है,
इस नइया के पतवार हो तुम, बजरंग तुम्हारी जय होवै ।
वानर दल के सरदार हो तुम, बजरंग तुम्हारी जय होवै ।।
भक्ति के अटल भंडार हो तुम, बजरंग तुम्हारी जय होवै ।। 13 ।।