कन्हैया मेरी इन अखियों में रहता है

जिसके ख़ातिर अखियों से,
आँसू बहता है,
वही कन्हैया मेरी,
इन अखियों में रहता है,
जिसके ख़ातिर अखियों से,
आँसू बहता है,
वही कन्हैया मेरी,
इन अखियों में रहता है,
जिसके ख़ातिर अखियों से……….

पता नहीं क्यों मेरी अखियाँ,
श्याम को ढूंढ़ती रहती,
छुपाया अपने ही घर में,
ठिकाना पूछती रहती,
ऐसा ये क्यों है करती,
इसको क्या मिलता है,
वही कन्हैया मेरी,
इन अखियों में रहता है,
जिसके ख़ातिर अखियों से……….

श्याम को सारे भक्तों से,
छुपाकर रखना चाहती है,
बुरी नज़रों से कान्हाँ को,
बचाकर रखना चाहती है,
साथ कोई ना ले जाए,
इसको डर लगता है,
वही कन्हैया मेरी,
इन अखियों में रहता है,
जिसके ख़ातिर अखियों से………..

चुराकर श्याम को रखती,
छुपाकर श्याम को रखती,
मगर किस्मत देखो इसकी,
श्याम को देख नहीं सकती,
ना ये भीतर झाँक सके,
ना श्याम निकलता है,
वही कन्हैया मेरी,
इन अखियों में रहता है,
जिसके ख़ातिर अखियों से………….

ये अखियाँ आंसू का झरना,
नियम से रोज बहाती है,
श्याम मेरा बहकर आ जाए,
जोर बनवारी लगाती है,
इसकी इस चालाकी का,
पता ना चलता है,
वही कन्हैया मेरी,
इन अखियों में रहता है,
जिसके ख़ातिर अखियों से,
जिसके ख़ातिर अखियों से,
आँसू बहता है,
वही कन्हैया मेरी,
इन अखियों में रहता है,
जिसके ख़ातिर अखियों से,
आँसू बहता है,
वही कन्हैया मेरी,
इन अखियों में रहता है,
जिसके ख़ातिर अखियों से…………
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