आज सजी हूँ दुल्हन सी मैं ,
कब तुम आओगे पिया।
अपने हाथों से पानी पिलाकर ,
कब गले से लगाओगे पिया।।
धुन :- लेखक के प्रसिद्ध भजन फूल बंगले की शोभा है न्यारी
करवाचौथ का त्योहार आया, घर घर में है आनद छाया।
कई सदियों पुराना यह त्योहार है।
पति पत्नी का इसमें छुपा प्यार है॥
बेला मधुर मिलन का है आया - घर घर में.....
हर सुहागिन सुहाग मना रही है।
सज-धज के पिया को रिझा रही है॥
नई दुल्हन सा रूप बनाया - घर घर में.....
अपनी प्रिया को प्रियतम बुला रहा है।
चाँद निकल आया ,बतला रहा है॥
दरस पिया का चाँद में पाया - घर घर में.....
हर सुहागिन ‘‘मधुप’’ यह इबादत करे।
जोरी सदा सुहागिन - सलामत रहे॥
हर नारी ,नारी धर्म निभाया - घर घर में.....।