रे मन मस्त सदा दिल रहना
आन पड़े सो सहना
रे मन मस्त सदा दिल रहना
कोई दिन कम्बल कोई दिन अम्बर
कबहु दिगंबर सोना
आत्म नशे में देह भुलाकर
साक्षी होकर रहना
रे मन मस्त सदा दिल रहना
कड़वा मीठा सबका सुनना
मुख अमृत बरसाना
समझ सुख दुःख नभ-बादल सम
रंग-संग छुड़ाना
रे मन मस्त सदा दिल रहना