ए भगवन को ढूंढने वाले क्या दुंदे पर्वत वन में,
मन की कवाडिया खोल देख ले वो तो वसा तेरे मन में,
ए भगवन को ढूंढने .........
ढोल मंजीरे मरिदंग बजाने से क्या हो बेहाल हो जायेगा,
फूलो फलो और धन की बेट से क्या कुछ हल हो जाये गा,
किसी के दुःख को समज ले अपना मिले गा वो अपने पण में,
ए भगवन को ढूंढने .......
कर लिए तीरथ नहा ली गंगा मन का मेलह ना साफ़ हुआ,
अच्छा क्या है और बुरा क्या कभी न ये इन्साफ हुआ,
क्यों छीने क्यों लुट मचाये उस की झलक है अर्पण में,
ए भगवन को ढूंढने ........
जैसा भी हो सिका तेरा सबके उपर चलता रहा,
क्या जायज़ और क्या नाजायज़ सब कुछ ही तो खनता रहा,
भूल गया इस प्रभु को जिस ने प्राण भी न रखे तन में,
ए भगवन को ढूंढने .....
ना जप ताप पे ना धुनी में ना भगवन है धर्मो में,
उसको पाना है तो पा ले वो है हंस शुभ कर्मो में,
धन दोलत में नही मिले गा ढूंड ले उसको निर्धन में,
ए भगवन को ढूंढने....