खाटू धाम बुला मुझको

हाथ जोड़कर अर्ज करूं, तू खाटू धाम बुला मुझको ।
अखियां कब से तरस रही, मैं जी भर देख सकूं तुझको ।।

जब से तेरी महिमा सुनी है, मेरे मन में प्यास जगी है ।
सुनकर तेरी दातारी, मुझको भी आस लगी है ।।
यह दुनिया जिसको ठुकराती, तू गले लगाता है उसको ।
अखियां कब से तरस रही, मैं जी भर देख सकूं तुझको ।।


तू फागुन के मेले में, इत्र गुलाल उड़ाता है ।
ढप-ढोलक की तानों पर, मस्ती धमाल मचाता है ।।
तेरे रंग में रंग जाऊं मैं भी, तू ऐसा रंग लगा मुझको ।
अखियां कब से तरस रही, मैं जी भर देख सकूं तुझको ।।

बाबा तेरे मंदिर में, लाखों का आना-जाना है ।
बस एक मैं ही सांवरिया, तू जिस से बेगाना है ।।
जो छोटी सी अर्जी ना सुने, क्यों लखदातार कहूँ तुझको ।।
अखियां कब से तरस रही, मैं जी भर देख सकूं तुझको ।।

तू माने या ना माने तुम्हें अपना मान लिया मैंने ।
तू मेरी बांह न थामे, तेरे चरणों को थाम लिया मैंने ।।
विष्णु ने जीवन की अपने, पतवार थमा दी है तुझको ।।
अखियां कब से तरस रही, मैं जी भर देख सकूं तुझको।।

तर्ज: हरियाणवी
लेखक: विष्णु कुमार सोनी, कानपुर
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