इस जग में मेरा, कान्हा बिन तेरे,
कोई ना सहारा है ।
छोड़कर तू चला, कमी तेरी नहीं,
दोष कुछ तो हमारा है ।।
जब आयेगा माखन चुराने,
द्वार को बन्द मैं ना करूँगी ।
मेरे मटकों को तोड़ेगा तू तो,
कोई ना शिकायत करूँगी ।।
प्राण कैसे मेरे, रहेंगे बिन तेरे,
बहे अश्रु की धारा है ।
छोड़कर...
क्यों कालिय के विष से बचाया,
क्यों कूदा था यमुना जल में ।
इन्द्र के कोप से क्यों छुड़ाया,
क्यों उठाया गोबर्धन को पल में ।।
दूर विपदा किया, क्यों न मरने दिया,
करता जब किनारा है ।
छोड़कर..
ब्रज की गलियों को सूनीं किया तू,
हम पनघट पे आहें भरेंगी ।
तेरी यादों में राधा व सखियाँ,
आग के बिन विरह से जरेंगी ।।
कान्त मैया कहे, न जा लाला मेरे,
तू तो अँखियों का तारा है ।
छोड़कर....
भजन रचना : दासानुदास श्रीकान्त दास
स्वर : अमित सारस्वत जी