मेरे गुरुवर भक्ति रस अवतार।
गुरु कह गुरु हरि दोउ इक सार।
गुरु कह गुरु का अधिक आभार।
गुरु कह तन करे जग व्यवहार।
गुरु कह मन करे हरि सों ही प्यार।
गुरु कह माँगो रो के निष्काम प्यार।
गुरु कह हरि गुरु को ही उर धार।
गुरु कह गुरु करुणा भंडार।
गुरु कह गुरु दीनन रखवार।
गुरु कह गुरु निराधार आधार।
गुरु कह हरि गुरु सेवा सार।
गुरु कह गुरु ही 'कृपालु' कर्णधार॥
पुस्तक : ब्रज रस माधुरी ,भाग -2
कीर्तन संख्या : 2
पृष्ठ संख्या : 2
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