कन्हैया काहे बात न मानत मोरी ॥
क्यूँकर जात करन चोरी तूँ , माखन की पर-दोरी,
किसी की तोड़े माखन-गगरी, किसी की बाँह मरोरी,
कन्हैया काहे बात न मानत मोरी.....
कौन कमी तोहे दही माखन की, क्यूँ करबै नित चोरी,
माखन चोर सुनत गोपिन मुख, छलके अँखियाँ मोरी,
कन्हैया काहे बात न मानत मोरी.....
बोले कृष्ण सुनौ री मैया,चंचल ब्रज की गोरी,
तूँ बातन उनके आ जाती,है मन की अति भोरी,
कन्हैया काहे बात न मानत मोरी.........
नैनन सैन बुलाकर मोहे, अंग लगावत छोरी,
कोऊ लेत गोद निज अपने,लेत बलैयाँ मोरी,
कन्हैया काहे बात न मानत मोरी......
निज हाथन मोरे मुख माखन,देत लगाय निगोरी,
जान उमर कौ बारौ मोसें, करतीं हैं बरजोरी,
कन्हैया काहे बात न मानत मोरी.......
मोसें काम करातीं घर कौ, डाल प्रेम की डोरी,
लाज लगै मोहि तोह बतावत, निरलज सिगरीं छोरी,
कन्हैया काहे बात न मानत मोरी....
मैं क्या मोरी बला करै नहिं, काहूँ के घर चोरी,
मुदित मातु सुन बतियाँ नैनन, नीर 'अशोक' बहो-री,
कन्हैया काहे बात न मानत मोरी....
(रचना-अशोक कुमार खरे)