आरती जगजननी मैं तेरी गाऊं।
तुम बिन कौन सुने वरदाती,
किस को जा कर विनय सुनाऊं॥
असुरों ने देवों को सताया,
तुमने रूप धरा महामाया।
उसी रूप का मैं दर्शन चाहूँ॥
रक्तबीज मधुकैटब मारे,
अपने भक्तों में काज सँवारे।
मैं भी तेरा दास कहाऊं॥
आरती तेरी करू वरदाती,
हृदय का दीपक नैयनो की भांति।
निसदिन प्रेम की ज्योति जगाऊं॥
ध्यानु भक्त तुमरा यश गाया,
जिस ध्याया, माता फल पाया।
मैं भी दर तेरे सीस झुकाऊं॥
आरती तेरी जो कोई गावे,
चमन सभी सुख सम्पति पावे।
मैया चरण कमल राज चाहूँ॥