दूर गुणों से धरती हो खली काली का जब खंजर चले,
नर मुंडो की धेरी लगा के खून से माँ खपर भरे,
देख कर के रूप भयंकर काल भी तब माँ से डरे,
आँखों में हो सुर की निराली,
काली का जब खंजर चले,
देतय सुर दुस्टो का मिटाती काली का माँ नमो निशान,
लेकर खंजर दौड़े जिधर भी तराही तारहि हो उस जगह,
रकत की बह जाती है नाली,
काली का जब खंजर चले,
जय हो महिसा सुर मर्दानी की चण्ड मुंड सम्हारनी की,
रकत दांता कहलाने वाली खंजर तिरशूल धारणी की,
देव मिल के भजाते है ताली ,
काली का जब खंजर चले,