मोर पंख को संवारिये ने इतना दिया समान,
शीश पे दाहरण करके देदी नई पहचान,
इस के बिना शृंगार अधूरा लगता है,
शीश मुकट भी सुना सुना लगता है,
कही गुन्हा बढ़ जाती इससे संवारिये की शान,
शीश पे दाहरण करके देदी नई पहचान,
मोर पंख को सांवरियां ने.........
मोर पंख की किस्मत का क्या केहना है,
संवारिये के मुकट का ये गहना है,
ऐसा लगता पिशले जनम के थे कोई एहसान,
शीश पे दाहरण करके देदी नई पहचान,
मोर पंख को सांवरियां ने ...
सारे जग में मोर ही ऐसा प्राणी है,
रखता है निष्काम भाव बड़ा ज्ञानी है,
कहे मोहित खुश होके श्याम ने खूब दिया है मान,
शीश पे दाहरण करके देदी नई पहचान,
मोर पंख को सांवरियां ने