नखसिख छविधर की। आरती करिये सियावर की॥
लालपीत अम्बर अति साजे।
मुख निरखत पूरण शशि लाजे।
चंदन खोर भाल पर राजे। कुमकुम केसर की॥
शीश मुकुट कुंडल झलकत है। चन्द्रहार मोती लटकत है।
कर कंकण की छवि दरसत है। जगमग दिनकर की ॥
मृदु चरनन में अधिक ललाई, हास विलास ना कछु कही जाई
चितवन की गति अति सुखदाई, मनकू मनहर की ॥
सिहासन पर चवर दुलत है, वाद्य बजत जय जय उच्चरत है
स्तुति सादर भक्त करत है सेंदूर रघुवर की ॥
भक्त हेतु अवतार लियो है, दुष्टन को संघार कियो है
हरि दासन्ह आनंद कियो है, पदचर अनुचर की
आरती करिये रघुवर की..