कभी देखा नहीं किसी का नसीबा,
जैसा लेखा विधाता ने मेरा,
क्या करू क्या करू मैं क्या करू,
बाल सखा कुछ ऐसे थे ना गइया न पैसे थे,
मन चंचल था बचपन का जिद माखन का कर बैठा,
धर्म यारी का मैंने निभाया हो चोर दुनिया ने मुझको बताया,
क्या करू क्या करू मैं क्या करू,
वे खुला रोज नहाती थी शर्म जरा नहीं आती थी,
उनको सबक सीखना था कपड़े मुझे छिपाना था,
कैसा दुनिया ने मुझको सताया देखो छलियाँ मुझको बताया,
क्या करू क्या करू मैं क्या करू,
कौरव भी मुझे प्यारे थे पांडव बड़े दुलारे थे,
लेकिन इक मजबूरी थी धर्म अधर्म की दुरी थी,
महाभारत को रोक नहीं पाया दोष सारा मेरे सिर पे आया,
कुल नाशक ये मोहन कहलाया
क्या करू क्या करू मैं क्या करू,