शहनाइयों की सदा कह रही है,
ख़ुशी की मुबारक घडी आ गई है,
सगे सुरख बागे में चाँद से बाबा,
जमी पर फलक से इक छवि आ गई है,
इतने सेठ जहां में मौज उड़ाते है,
उन्ही से पु छो कहा से लेकर आते है,
पता लगाया हम ने इनके बारे में,
पता चला अक्षर खाटू जाते है,
इतने सेठ जहां में मौज उड़ाते है,
श्याम हो जब साथ चिंता भला कैसी,
काम सारे हो रहे इसकी दया ऐसी,
हो गई पूरी तमाना चाहा था जैसा,
मिल गेय हम को ठिकाना दुनिया में वैसा,
किसी के आगे हाथ नहीं फेहलाते है,
पड़े जरूरत सिहदे खाटू जाते है,
इतने सेठ जहां में मौज उड़ाते है,
देखा इसने हाल जब इस नए ज़माने का,
पड़ गया चस्का इसे भी सेठ बनाने का,
आज़माना है अगर तुम आजमा लेना,
खाटू जाके ये करिश्मा देख भी लेना,
निर्धन से भी निर्धन खाटू जाते है,
अगले ही दिन वो सेठ नजर आते है,
इतने सेठ जहां में मौज उड़ाते है,
है इरडा अगर तेरा भी मौज उड़ाने का,
स्नेही तू भी नियम बना ले खाटू जाने का,
खाटू आने जाने से किस्मत स्वर जाती श्याम अछि खासी पहचान हो जाती,
रोज रोज जो श्याम से मिलने जाते है,सांवरिया की आँखों में बस जाते है,
इतने सेठ जहां में मौज उड़ाते है,