कमली श्याम दी कमली नी में कमली श्याम दी कमली,
रूप सलोना देख श्याम का, सुध बुध मेरी खोयी,
नी में कमली होई॥
१, सखी पनघट पर यमुना के तट पर लेकर पहुंची मटकी,
भूल गयी सब एक बार ही जब छवि देखि नटखट की,
देखत ही में हुईं बाँवरी उसी रूप में खोयी,
देखत ही में हुईं बाँवरी उसी रूप में खोयी,
नी मैं कमली होई॥
कमली श्याम दी कमली,
रूप सलोना देख श्याम का सुध बुध मेरी खोयी,
नी मैं कमली होई कमली श्याम दी कमली॥
२, कदम के नीचे अखियाँ मीचे,
खड़ा था नन्द का लाला,
मुख पर हंसी हाथ में बंसी मोर मुकुट माला,
तान सुरीली मधुर नशीली तान सुरीली मधुर नशीली तनमन दियो भिगोई,
नी मैं कमली होई॥
कमली श्याम दी कमली,
रूप सलोना देख श्याम का सुध बुध मेरी खोयी,
नी मैं कमली होई कमली श्याम दी कमली॥
३, सास नन्द मुझे पल पल कोसे हर कोई देवे ताने,
बीत रही मुझ बिरहन पर ये कोई ना जाने
पूछे सब निर्दोष बाँवरी तट पे तू कहे गयी॥
नी मैं कमली होई नी मैं कमली होई॥
कमली श्याम दी कमली,
रूप सलोना देख श्याम का सुध बुध मेरी खोयी,
नी मैं कमली होई कमली श्याम दी कमली॥