कान्हा जी मोरे,कबहूँ तो सुधि मोरी लीजो:
कान्हा जी मोरे, कबहूँ तो सुधि मोरी लीजो,
फंसि लाख भँवर चौरासी नाचूँ,
मोहें भव से बाहर कीजो,
कान्हा जी मोरे, कबहूँ तो सुधि मोरी लीजो-----
पद सरोज अविरल दे भक्ती,
चरण शरण मोहें लीजो,
कान्हा जी मोरे, कबहूँ तो सुधि मोरी लीजो-----
हे कृपासिंधु करुणा सुखसागर,
मोहें पद पंकज रज दीजो,
कान्हा जी मोरी,कबहूँ तो सुधि मोरी लीजो-----
रचना आभार: ज्योति नारायण पाठक
वाराणसी