गंगा जमुना के संगम पर मेला लगा अपार है,
लगा के डुबकी पाप काटता देखो यह संसार है,
है पतित पावन गंगाजी जमुना की निर्मल धारा है,
संगम स्थल पर सरस्वती मिलकरके उन्हें सवांरा है,
पावन प्रयाग यह तीर्थराज सारी दुनिया से न्यारा है,
उस भव्य त्रिवेणी संगम को सौबार प्रणाम हमारा है,
पावन जल से भक्त आचमन करता बारम्बार है,
इसी भूमि पर रिष मुनियों ने मोक्षमार्ग को पाया था,
भरतद्वाज ने इसी भूमि पर निज उपदेश सुनाया था,
राम नाम की कथा हजारों बार यहीं पर गाय था,
केवट से श्रीरामचन्द्रजी अपना चरण धुलाया था,
करने से स्नान यहां सब होते भाव से पार है,
तपोभूमि है यह पावन इसमे है कोई पर नही,
जो नर यहां नही आते उनका होता उद्धार नही,
कहो भला किस हिंदू को इस भूमि से होगा प्यार नही,
कौन है जो उसके खातिर है खुला मोक्ष का द्वार नही,
निर्मोही भी पूर्ण पर्व पर जाने को तैयार है,